अब किन्नरों की भी दर्ज होगी अपनी जाति, जानें पहले क्यों नहीं थी ये व्यवस्था?

Caste of Transgenders: बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने राज्य में चल रही जातीय जनगणना में किन्नर समुदाय के सदस्यों को अपनी जाति दर्ज कराने अधिकार दे दिया. दरअसल, बिहार सरकार ने जातीय जनगणना में किन्नर समुदाय को जाति के तौर पर कोड 22 दे दिया था.
इस पर आपत्ति जताते हुए किन्नर समाज पटना हाईकोर्ट चला गया. कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि किन्नर समुदाय को जातियों के अलग-अलग कोड्स में से 22 में क्यों रखा है.
किन्नरों को जनगणना प्रश्नावली में एक जाति के तौर पर वर्गीकृत करने के विवाद के बाद सीएम नीतीश कुमार ने अपने फैसले को पटलते हुए नई व्यवस्था दी है. नई व्यवस्था के तहत किन्नर अपनी-अपनी जाति दर्ज करा सकते हैं.
हाल में ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश में तब आया था, जब शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने किन्नरों को ओबीसी कैटेगरी में रखने का ऐलान किया था. इस पर पूर्व विधायक शबनम मौसी ने कहा था कि मैं तिवारी ब्राह्मण हूं.
मैं अपनी जाति क्यों बदलूं. बिहार के मामले में किन्नर समाजसेवी रेशमा प्रसाद ने पटना हाईकोर्ट में सप्ताहभर पहले ही जनहित याचिका दायर की थी.
याचिका में जनगणना में किन्नरों को जाति के तौर पर वर्गीकृत किए जाने पर आपत्ति जताते हुए इसे संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया. हालांकि, कोर्ट में सुनवाई होने से पहले ही बिहार सरकार ने नई व्यवस्था को लेकर शासनादेश जारी कर दिया. जानते हैं कि किन्नरों को अब तक किसी जाति में शामिल क्यों नहीं किया जाता था?
सुप्रीम कोर्ट का किन्नरों के पक्ष में बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल लीगल सर्विसेस अथॉरिटी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मुकदमे की सुनवाई करते हुए 15 अप्रैल 2014 को किन्नरों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए समुदाय को कानूनी तौर पर थर्ड जेंडर की मान्यता दी.
पहली बार आए ऐसे फैसले के बाद भारत किन्नरों को थर्ड जेंडर के तौर पर मान्यता देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया था. सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति एके सिकरी की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 का हवाला देते हुए कहा था कि देश में शिक्षा, रोजगार और सामाजिक स्वीकार्यता पर किन्नरों का बाकी नागरिकों की ही तरह बराबर का अधिकार है.