Sirisha Bandla : ‘घर की छत पर सोते हुए टिमटिमाते तारों को देखती थी’ , Sirisha Bandla भारतीय मूल की तीसरी महिला Astronaut की कहानी उसी की जुबानी

Sirisha Bandla Space News: ब्रिटिश अरबपति रिचर्ड ब्रैनसन (Richard Branson) अपनी कंपनी वर्जिन ग्लाक्टिक के स्पेसक्राफ्ट के जरिए पिछले साल स्पेस में गए. उनके साथ भारतीय मूल की सिरिशा बांदला (Sirisha Bandla) ने भी स्पेस के लिए उड़ान भरी. ऐसा करने वाली वह भारतीय मूल की तीसरी महिला बनीं. सिरिशा ने अब अपने इस एक्सपीरियंस को लेकर बात की है. उन्होंने बताया कि आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में रहने के दौरान उन्हें पहली बार स्पेस को लेकर जिज्ञासा पैदा हुई. उस समय वह बहुत छोटी थीं.
एक निजी न्यूज चैनल एनडीटीवी से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘मेरी सबसे पुरानी यादों में से एक है कि बिजली गुल हो जाया करती थी. मुझे याद है कि मैं अपने दादा-दादी के घर की छत पर सो रही थी. मैंने तारों को इतना चमकीला कभी नहीं देखा था. जब प्रदूषण नहीं होता है, तो ऐसा लगता है जैसे वे आपके चेहरे के ऊपर ही टिमटिमा रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि शायद यही वो पल था, जिसने मेरे मन में वास्तव में स्पेस को लेकर बीज बोए. भारत में रहते हुए तारों को इतना चमकदार देखकर मुझे उत्सुकता हुई कि आखिर वहां क्या है? मैं उनके बीच रहना चाहती थीं.’
अमेरिका में पलने-बढ़ने के दौरान उन्होंने अपने इस सपने को पूरा करने का ठान लिया. 34 वर्षीय बांदला आंखों की खराब रोशनी की वजह से नासा एस्ट्रोनॉट्स नहीं बन सकीं, लेकिन उन्होंने इंजीनियरिंग का रास्ता पकड़ लिया. हालांकि, उन्हें जल्द ही स्पेस में जाने का मौका मिला. दरअसल, युवा एयरोस्पेस इंजीनियर उस टीम का हिस्सा थीं, जो पिछले साल जुलाई में वर्जिन गैलेक्टिक की पहली स्पेस फ्लाइट में सर रिचर्ड ब्रैनसन के साथ स्पेस में गई. उनका स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी से लगभग 90 किमी ऊपर तक गया और यहां तक की दूरी तय करने के बाद इसका उन पर गहरा प्रभाव पड़ा.
सिरिशा बांदला ने स्पेस ट्रिप को लेकर क्या-क्या कहा?
सिरिशा बांदला ने स्पेस के अपने एक्सपीरियंस को लेकर बात की. उन्होंने बताया, ‘पृथ्वी की तरफ देखते हुए और वायुमंडल की पतली नीली रेखा को देखकर ऐसा लगा कि हम लोग कितने भाग्यशाली हैं. साथ ही हमारा ग्रह कितना नाजुक है. स्पेस से ये सब देखना हैरतअंगेज था. मैं अमेरिका के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से को देख रही थी. हम अलग-अलग देशों के बारे में बात कर रहे थे. लेकिन मैंने एक भी सीमा नहीं देखी.’ बांदला ने बताया, ‘इसने मुझे सिखाया कि हम कितने विभाजित हो चुके हैं. स्पेस के काले अंधेरे में शानदार पृथ्वी को देखकर मुझे छोटा महसूस हो रहा था. लेकिन इससे मुझे महत्वहीन महसूस नहीं हुआ. इसलिए, मैं पॉजिटिव चेंज के साथ पृथ्वी पर लौटी. हमारे पास जो कुछ भी है उसकी वास्तव में मैं सराहना करती हूं.’
बांदला बताती हैं, ‘उस ट्रिप के बाद मुझे हमेशा एक ही शब्द सुनाई देता है, वो है ‘अविश्वसनीय’. ये एक भावनात्मक एहसास की तरह था. एक मानसिक स्थिति थी. इसे बयां करना मुश्किल है. यही वजह है कि मैं तब तक इंतजार नहीं कर सकती हूं, जब तक कि अधिक से अधिक लोग इस परिवर्तनकारी यात्रा का अनुभव नहीं कर लेते हैं.’ उन्होंने बताया, ‘मैं तब तक इंतजार नहीं कर सकदी जब तक कि कवि और प्रोफेश्नल कम्युनिकेटर स्पेस में जाकर वापस नहीं आते हैं और फिर अपने एक्सपीरियंस के बारे में बात नहीं कर लेते हैं. वे एक इंजीनियर के मुकाबले अपने एक्सीपिरियंस को ज्यादा अच्छे शब्दों में बयां करेंगे.’