Spirituality: जानें एक पक्के मुसलमान को किन-किन नियमों का पालन करना जरूरी होता है ?
Mar 15, 2022, 20:00 IST
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5 वक्त की नमाज़ पढ़ना हर मुस्लिम के लिए जरूरी है
रोजे रखना हर मुस्लिम के लिए जरूरी है
अपनी योग्यता के मुताबिक ज़कात देना जरूरी है
Spiritual News: इस्लाम(Islam) में एक मुसलमान के लिए कुछ नियमों को मानना जरूरी होता है।कुछ धार्मिक गतिविधियों में हर दिन भाग लेना होता है। एसे ही कुछ नियम और कायदे नीचे दिए गए हैं।
- एक मुसलमान शहादा का कलमा पढ़कर अपने मुसलमान होने की घोषणा करता है। ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मद उर रसूल अल्लाह। पहले कलमे का मतलब है, अल्लाह एक है, अल्लाह के सिवा कोई माबूद यानी दूसरा खुदा नहीं है और पैगंबर मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं।
- मुस्लिम परिवार में जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो सबसे पहले उसके कान में शहादत का कलमा पढ़कर सुनाया जाता है।
- मुसलमान होने की बुनियाद ही ये है कि कोई व्यक्ति अल्लाह को मानता हो और नमाज पढ़ता हो। इस्लाम में पांचों वक्त की नमाज पढ़ना जरूरी है और इसको बिलकुल भी छोड़ा नहीं जा सकता है।
- इनको पांच समय में बांटा जाता है। सुबह की नमाज को फजर, दोपहर की नमाज को जोहर, शाम से पहले असर, शाम के वक्त को मगरिब और आधी रात से पहले पढ़ी जाने वाली नमाज को ईशा की नमाज कहा जाता है।
- नमाज अदा करने का नियम यह है कि जिस दिशा में सूर्यास्त होता है उसी दिशा में मुंह करके नमाज अदा करना चाहिए, क्योंकि इस दिशा में पाक काबा स्थित है। सूर्यास्त पश्चिम दिशा में होता है और इसलिए नियम है कि नमाज अदा करते समय मुंह इसी दिशा में होना चाहिए।
- सफर के समय भी एक मुसलमान को नमाज पढ़ना जरूरी होता है, लेकिन इस दौरान नमाज पढ़ने की प्रक्रिया छोटी कर दी जाती है।
- इसका मतलब यह हुआ कि सामान्य तौर पर नमाज पढ़ने के लिए जितना समय लगता है, सफर में वह आधा हो जाता है।
- नमाज पढ़ने के लिए किसी व्यक्ति का पाक, यानी शरीर से लेकर कपड़े तक पर गंदगी न हो यह जरूरी है। साथ ही जिस जगह पर वह नमाज पढ़े वो भी पाक हो।
- मजान के महीने में रखा जाने वाला सौम या रोजा यानी उपवास है। इस्लाम के अलावा अन्य धर्मों में भी उपवास का उल्लेख मिलता है। रमजान इस्लामी महीनों में नौवां है। इस महीने में रोजे रखना हर सेहतमंद मुसलमान पर फर्ज है।
- रोजे के दौरान सुबह सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ भी खाने या पीने पर पाबंदी होती है। इसकी वजह से रोजेदार सुबह सहरी के वक्त खाना खाते हैं और फिर पूरे दिन कुछ भी नहीं खाते पीते और फिर शाम को इफ्तार के बाद रोजा खोलते हैं।
- ऐसा माना जाता है कि इस महीने रोजा रखने वाले रोजेदारों को कई गुना सवाब मिलता है और उन्हें जन्नत नसीब होती है।
- आमतौर पर खजूर खाकर ही रोजे खोले जाते हैं, हालांकि, किसी के पास खजूर उपलब्ध नहीं है तो वह पानी पीकर भी रोजे खोल सकता है। खजूर में ग्लूकोज, सुक्रोज और फ्रुक्टोज पाए जाते हैं, जिससे शरीर को तुरंत एनर्जी मिलती है।
- कहा जाता है कि रमजान के महीने में रोजा रखने का अर्थ केवल रोजेदार को उपवास रखकर, भूखे-प्यासे रहना नहीं है, बल्कि इसका सच्चा अर्थ है अपने ईमान को बनाए रखना। मन में आ रहे बुरे विचारों का त्याग करना। रोजे का अर्थ है अपने गुनाहों से तौबा करना।
- इस्लाम के कुल 5 स्तंभों में से हज पांचवां स्तंभ है। सभी स्वस्थ और आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमानों से अपेक्षा होती है कि वो जीवन में एक बार हज पर जरूर जाएं।
- हज को अतीत के पापों को मिटाने के अवसर के तौर पर देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि हज के बाद उसके तमाम पिछले गुनाह माफ कर दिए गए हैं और वो अपनी जिंदगी को फिर से शुरू कर सकता है।
- ज्यादातर मुसलमानों के मन में जीवन में एक बार हज पर जाने की इच्छा होती है। जो हज का खर्च नहीं उठा पाते हैं उनकी धार्मिक नेता और संगठन आर्थिक मदद करते हैं।
- कुछ मुसलमान तो ऐसे भी होते हैं जो अपनी जिंदगी भर की कमाई हज पर जाने के लिए बचाकर रखते है। दुनिया के कुछ हिस्सों से ऐसे हाजी भी पहुंचते हैं जो हजारों मील की दूरी महीनों पैदल चलकर तय करते हैं और मक्का पहुंचते हैं।
- दुनिया भर के लाखों मुसलमान हज के लिए हर साल सऊदी अरब पहुंचते है। सऊदी अरब के मक्का शहर में काबा को इस्लाम में सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। इस्लाम का यह प्राचीन धार्मिक अनुष्ठान दुनिया के मुसलमानों के लिए काफी अहम है।
- ऐसी मान्यता है कि रमजान के महीने में ही मुसलमानों की पाक किताब क़ुरान करीम आसमान से दुनिया पर तमाम इंसानों की रहनुमाई के लिए उतरनी शुरू हुई और इसके बाद थोड़ा थोड़ा करके जरूरत के मुताबिक तकरीबन 23 साल में मुकम्मल हुई।
- इस्लाम में हर मुसलमान पर जकात, यानी दान देना जरूरी बताया गया है। आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, उसका 2.5 फीसदी हिस्सा अपने ही समुदाय के किसी गरीब या जरूरतमंद को दिया जाता है। इसे ही जकात कहते हैं।
- इसे ऐसे समझ सकते हैं कि यदि किसी मुसलमान के पास तमाम खर्च करने के बाद 100 रुपये बचते हैं तो उसमें से 2.5 रुपये किसी गरीब को देना जरूरी होता है।
- जकात पूरे साल के दौरान कभी भी दी जा सकती है। हालांकि, मुसलमान रमजान के महीने में जकात देना ज्यादा पसंद करते हैं।
- माना जाता है कि जो लोग रमजान के महीने में जकात नहीं देते हैं, उनके रोजे और इबादत कुबूल नहीं होती है, बल्कि धरती और जन्नत के बीच में ही रुक जाती है।
यह लेख इंटरनेट पर मौजूद जानकारी पर आधारित है। ज्यदा जानकारी इस्लामिक विद्वानों से प्राप्त कर सकते हैं।
Practices that every Muslim must follow.
Indian Muslims.