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बिना तेल और बाती की जल रहीं ज्योति, अकबर भी नहीं बुझा सका था ज्वाला मां की अखंड ज्योति

ऐसा कहा जाता है की  एक बार बादशाह अकबर ने माता की शक्ति की परख करनी चाही। उसने दिव्य ज्योति को बुझाने का प्रयास किया, पर हर बार उसे असफलता ही मिली। आखिरकार उसने अपनी पराजय स्वीकार की। अकबर ने देवी के दरबार में छत्र चढ़ाया था।

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jwala ji mndir

Jwala Devi : हिमाचल प्रदेश का ज्वाला देवी धाम ( Jwala Devi Dham )शक्ति की आराधना का एक ऐसा स्थल है जहां न केवल आम आदमी, बल्कि शहंशाहों ने भी शीश झुकाया था। कथाओं के अनुसार, इस स्थान का विशेष महत्व है, क्यों​कि यहां देवी सती की जिह्वा गिरी थी। इसके बाद यहां के कण-कण में दिव्य शक्ति का वास हो गया। इस स्थान पर मां ज्वाला की दिव्य ज्योति निरंतर जलती रहती है। यह अखंड ज्योति है जो गर्मी, सर्दी, बरसात, तूफान – हर वक्त जलती ही रहती है। यहां माता के ज्योति रूप में दर्शन होते हैं। यहां किसी मूर्ति की नहीं बल्कि बिना तेल और बाती की जल रहीं नौ ज्योति की आराधना की जाती है। इसलिए इस मंदिर को जोता वाली मंदिर या ज्वालामुखी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां पृथ्वी के गर्भ से निकल रहीं 9 ज्वालाओं का आज तक कोई रहस्य नहीं जान पाया। जिसने भी इसे बुझाने की कोशिश की, उसे हार माननी पड़ी। लोग दूर-दूर से यहां आकर माता की ज्योति के सामने माथा टेकते हैं।

क्या है मंदिर की कथा

श्रद्धालु बताते हैं कि पुराने जमाने में यहां राजा भूमिचंद्र शासन करते थे। उन्होंने विभिन्न ग्रंथों का अध्ययन कर यह मालूम किया कि इसी क्षेत्र में कहीं देवी सती की जिह्वा गिरी थी। हालांकि वे उस स्थान का पता लगाने में असफल रहे। तब उन्होंने देवी के सम्मान में नगरकोट-कांगड़ा में एक मंदिर बनवा दिया। उन्हीं दिनों एक ग्वाले ने राजा को सूचना दी कि धौलाधार के पर्वतों में दिव्य ज्योति स्वत: जल रही है। उसमें कोई ईंधन नहीं डाला गया, परंतु वह लगातार अपने पूर्ण स्वरूप में विद्यमान है। तब राजा ने उस ज्योति के दर्शन किए और एक मंदिर बनवाया।

अकबर ने परखी माता की शक्ति

इतिहास में दर्ज है कि अकबर ने ज्वाला जी की ज्योति को बुझाने के लिए कई बार प्रयास किया पर बुझा नहीं पाया। उसने यहां नहर खुदवाने की कोशिश की, पर वह कामयाब नहीं हुआ। आज भी मंदिर की दाहिनी ओर यह नहर दिख जाएगी। उसने लोहे के तवों से भी मां की ज्योति को दबाने की कोशिश की, पर वह उसे पिघलाते हुए बाहर निकल गई थी। अकबर अंत में नतमस्तक होकर माता को सोने की छत्र चढ़ाने के लिए पहुंचा, पर माता ने उसे स्वीकार नहीं किया। यह छत्र गिरकर किसी और धातु में बदल गया। मुगल शासक औरंगजेब ने ज्वाला मां की ज्योति को नष्ट करने के लिए अपने सैनिकों को भेजा, पर मां के चमत्कार से मधुमक्खियों ने उन पर हमला कर दिया। फिर सारे सैनिक जान बचाकर वापस भागने को मजबूर हो गए। इसके बाद औरंगजेब ने यहां आने की योजना त्याग दी।