Kakanmath Mandir: लटकते हुए पत्थरों पर सदियों से खड़ा है मंदिर,एसा लगता है अभी गिरेगा
Kakanmath Mandir: इस रहस्यमई मंदिर की खासियत यह है कि जो भी इसके बारे में सुनता है वह जरूर इसे देखना चाहता है. बड़े-बड़े आंधी तूफान आए लेकिन इस रहस्यमयी मंदिर (Temple) को हिला नहीं पाए. बताया जाता है कि मुस्लिम शासकों ने इसे तोड़ने के लिए गोले तक दागे, लेकिन ग्वालियर चंबल अंचल के बीहड़ों में बना सिहोनिया का ककनमठ मंदिर (Kakanmath Mandir) आज भी लटकते हुए पत्थरों से बना हुआ है.

ज्ञानवापी (Gyanvapi Masjid) और देश के पुराने मंदिरों को लेकर जारी विवाद के बीच बहुत सी चीजें देश के कोने कोने से निकल कर आ रही हैं जो ये बता रही हैं कि देश की संस्कृति किसी वक्त बहुत ज्याद समृद्ध रही थी जिसे विदेशी अक्रांताओं ने मिटाने का भरसक प्रयास किया। इसी बीच हम आपको मध्यप्रदेश के उस मंदिर के बारे में बताना चाहते हैं जो आड़े टेढे लटके हुए पत्थरों का बना है और एसा लगता है जैसे अभी गिर जाएगा लेकिन सदियों से यूं ही खड़ा है। इस रहस्यमई मंदिर की खासियत यह है कि जो भी इसके बारे में सुनता है वह जरूर इसे देखना चाहता है. बड़े-बड़े आंधी तूफान आए लेकिन इस रहस्यमयी मंदिर (Temple) को हिला नहीं पाए. बताया जाता है कि मुस्लिम शासकों ने इसे तोड़ने के लिए गोले तक दागे, लेकिन ग्वालियर चंबल अंचल के बीहड़ों में बना सिहोनिया का ककनमठ मंदिर (Kakanmath Mandir) आज भी लटकते हुए पत्थरों से बना हुआ है.
10 किलोमीटर दूर से दिखता है मंदिर
चंबल के बीहड़ में बना ये मंदिर 10 किलोमीटर दूर से ही दिखाई देता है. जैसे-जैसे इस मंदिर के नजदीक जाते हैं इसका एक एक पत्थर लटकते हुए भी दिखाई देने लगता है. जितना नजदीक जाएंगे मन में उतनी ही दहशत लगने लगती है. लेकिन किसी की मजाल है, जो इसके लटकते हुए पत्थरों को भी हिला सके. आस-पास बने कई छोटे-छोटे मंदिर नष्ट हो गए हैं, लेकिन इस मंदिर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. मंदिर के बारे में कमाल की बात तो यह है कि जिन पत्थरों से यह मंदिर बना है, आस-पास के इलाके में ये पत्थर नहीं मिलता है. इस मंदिर को लेकर कई तरह की कहानियां हैं. पूरे अंचल में एक किवदंती सबसे ज्यादा मशहूर है कि मंदिर का निर्माण भूतों ने किया था. लेकिन मंदिर में एक प्राचीन शिवलिंग विराजमान है, जिसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि भगवान शिव का एक नाम भूतनाथ भी है. भोलेनाथ ना सिर्फ देवी-देवताओं और इंसानों के भगवान हैं बल्कि उनको भूत-प्रेत व दानव भी भगवान मानकर पूजते हैं. पुराणों में लिखा है कि भगवान शिव की शादी में देवी-देवताओं के अलावा भूत-प्रेत भी बाराती बनकर आए थे और इस मंदिर का निर्माण भी भूतों ने किया है.
मंदिर निर्माण को लेकर अलग-अलग दावे
इस मंदिर के चारों ओर अन्य लघु मंदिरों का भी निर्माण किया गया था जिनके कुछ अवशेष देखे जा सकते हैं. मंदिर का नाम रानी ककनवती के नाम पर जाना जाता है जो संभवत कच्छपघात शासक कीर्ति राज की रानी थी जिस के आदेश पर ही इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में किया गया था. मंदिर के बाहर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के लगे शिलालेख में पुख्ता तौर पर यह बात नहीं लिखी है कि मंदिर का निर्माण ककनवती ने ही करवाया था, शिला पर संभवत: शब्द का इस्तेमाल किया गया है जिसके मायने ये हैं कि सिर्फ कही सुनी बातों के आधार पर इसे लिखा गया है. और कही सुनी बातें तो भूतों के द्वारा मंदिर का निर्माण भी बताया जाता है. स्थानीय लोग बताते हैं मंदिर बनते-बनते सुबह होने से पहले ही कोई जाग गया था और उसने आटे की चकिया चलाने के लिए उसमें लकड़ी ठोकी जिसकी आवाज सुनकर मंदिर का निर्माण रात में ही छोड़ दिया गया और अधूरा छोड़कर ही भूत-प्रेत चले गए. गांव के लोग और पुरातत्व के जानकार लोगों का कहना है कि एक रात में यह मंदिर बन गया हो इस कहानी पर ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि मंदिर परिसर में इसके अवशेष ये देखकर यह लगता है कि मंदिर पहले भव्य बना था.

तोपों से हमला किया गया लेकिन मंदिर नहीं हिला
बताया जाता है कि इस मंदिर की परिक्रमा भी पत्थरों से पटी हुई थी, लेकिन मुस्लिम शासकों ने इस पर तोपों से हमला किया और तुड़वाने की कोशिश की लेकिन पूरा मंदिर तोड़ नहीं पाए. साथ ही जानकारों का यह भी कहना है कि जिस सदी का यह मंदिर बना है उसी काल में कई और भी मंदिर बने हैं. हां यह बात अलग है कि ककनमठ सबसे अद्भुत और रहस्यमई है. पूरे ककनमठ मंदिर परिसर में इसके चारों ओर टूटे-फूटे पत्थरों का जमावड़ा है. इसके बारे में भी दो तरह की कहानियां बताई जाती हैं कुछ लोग तो यह कहते हैं कि यह पत्थर मंदिर के निर्माण में लगना था लेकिन लग नहीं पाया और यह अधूरा रह गया. मुरैना ज़िले के सिहोनिया गांव में बना ककनमठ मंदिर का निर्माण बड़े-बड़े पत्थरों से हुआ है. इस मंदिर के निर्माण में किसी भी तरह के सीमेंट गाड़े का इस्तेमाल नहीं किया गया है. सभी पत्थर एक के ऊपर एक कतारबद्ध रखे हुए हैं. एक बार देखकर तो मन में यह सवाल उठता है कि कहीं यह गिर ना जाए लेकिन ये मंदिर वर्षों से अपने स्थान पर अडिग खड़ा है. अब ये मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन. ककनमठ मंदिर पर कोई पुजारी नहीं है और ना ही रात में यहां किसी को रोकने की अनुमति दी जाती है. पुरातत्व विभाग के कुछ गार्ड भी हैं जो रात होने के बाद गांव में जाकर रुकते हैं. इस मंदिर के प्रति लोगों में खौफ और दहशत शायद इन लटकते हुए पत्थरों की वजह से ही है.