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Barna Parv : एक ऐसा त्योहार, जिसमें लोग करते हैं पेड़-पौधों की निगरानी

बिहार का बरना पर्व अपने आप में अनोखा है, जिसमें लोग पेड़-पौधों की निगरानी के लिए हाथों में लाठी-डंडे थामते हैं. इस दौरान जनजाति के लोग 48 घंटे के लिए किसी भी घास या तिनके तक को हाथ नहीं लगाते हैं

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भारत में त्योहारों का अपना महत्व है. हर राज्यों में अलग-अलग संस्कृतियां और परंपराएं देखने को मिलती हैं. इसी तरह हर राज्यों में त्योहार को अपने खास रंग-ढंग से मनाने की परंपरा भी सदियों से चलती आ रही है. बिहार का बरना पर्व भी अपने आप में अनोखा है, जिसमें लोग पेड़-पौधों की निगरानी के लिए हाथों में लाठी-डंडे थामते हैं. इतिहासकार श्रवण कुमार बताते हैं कि बिहार के पश्चिमी चंपारण क्षेत्र में बरना पर्व गत 400 साल से मनाया जा रहा है. हर वर्ष 30 अगस्त से 22 सितंबर के बीच बरना पर्व मनाया जाता है. इस दौरान अलग-अलग जगहों पर 48 घंटे के लिए पाबंदी लगाई जाती है, जिसमें जनजाति के लोग 48 घंटे के लिए किसी भी घास या तिनके तक को हाथ नहीं लगाते हैं. इस पर्व का उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना और पेड़-पौधों की रक्षा करना है. इतिहासकार के अनुसार, 16वीं शताब्दी से ही थारू समाज के लोग जंगल में निवास कर रहे हैं. समाज के लोगों ने हरियाली बचाने और पेड़-पौधों की रक्षा के लिए संकल्प ले रखा है. तब से बरना पर्व मनाया जा रहा है.इस पर्व के दौरान जनजाति के लोग लाठी-डंडों के साथ पेड़ पौधों की सुरक्षा करते हैं. पर्व की परंपरा के अनुसार इस दौरान फल और सब्जियों को भी नहीं तोड़ा जाता है. ना ही घास तोड़ी जाती है. लोग केवल पर्यावरण की रक्षा के लिए निगरानी करते हैं. इस तरह बरना पर्व मनाया जाता है.