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वो गांव जहां जली थी होलिका, आज भी यहां राख से खेली जाती है होली

मान्‍यता है कि बिहार के पूर्णिया जिले के धरहरा गांव में पहली होली खेली गई थी।

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Holika dehan
पूर्णिया के गांव में जली थी होलिका, तब शुरू हुई होली
धरहरा गांव में होलिका दहन कर राख से खेलते हैं होली
उत्‍तर प्रदेश के हरदोई में भी होलिका दहन की मान्‍यता
 

होली के पहले की रात होलिका दहन की परंपरा है, लेकिन शायद आप यह नहीं जानते कि होलिका दहन  और होली की परंपरा बिहार से शुरू हुई है। ऐसी मान्‍यता है कि बिहार के पूर्णिया जिले के धरहरा गांव में पहली होली खेली गई थी। मान्‍यता है कि यहीं भगवान विष्‍णु के विरोधी हिरण्यकश्यप का किला था, उसकी बहन होलिका भगवान विष्‍णु के भक्‍त प्रहलाद को जलाकर मारने के क्रम में खुद ही भस्म हो गई थी। प्रहलाद को बचाने के लिए इसी जगह भगवान विष्णु ने नरसिंह  अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था। इस घटना के बाद ही हाेली की परंपरा शुरू हुई। होलिका दहन के दिन वहां आज भी हजारों श्रद्धालु राख और मिट्टी से होली खेलते हैं।

बिहार के पूर्णिया के बनमनखी में सिकलीगढ़ धरहरा गांव है। जहा होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद बच गया। इसके बाद से होलिका दहन की शुरुआत हुई। तब से पूर्णिया के धरहरा गांव के लोग होलिका दहन कर राख से होली खेलते हैं और खुशी मनाते है लेकिन उत्तर प्रदेश में भी इससे मिलती जुलती एक कहानी सामने आई है। जहा यूपी के जिला हरदोई से भी हिरण्‍यकश्‍यप का नाता माना जाता है। कहते हैं कि हरदोई हिरण्यकश्‍यप की नगरी थी, जहां वह खुद को भगवान से बड़ा बताने लगा था। इस कारण उसे हरि-द्रोही की संज्ञा दी गई थी। इसीलिए हिरण्यकश्‍यप की राजधानी का नाम हरि द्रोही पड़ा, जो अब  हरदोई हो गया। मान्यता है कि हरदोई में भक्‍त प्रह्लाद को गोद में लेकर हिरण्यकश्‍यप की बहन होलिका अग्नि कुंड में बैठी थी। नहीं जलने के वरदान के बावजूद होलिका तो भस्म हो गई, जबकि प्रह्लाद बच गया। उसी घटना के बाद लोगों ने खुश होकर पहली होली मनाई थी। कहते हैं कि हरदोई में वह कुंड आज भी मौजूद है, जहां होलिका जली थी।